भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दोहा सप्तक-77 / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्वागत अभिनव सूर्य का, जो आया है द्वार।
लाया है सब के लिये, किरणों का उपहार।।

चित्रलिखित सी गोपिका, लिखी भित्ति में काढ़।
नैना मूक पुकारते, ऐसी प्रीति प्रगाढ़।।

मधुर मधुर रचना करूँ, जो सबके मन भाय।
रुचिर छंद दोहा लिखूँ, माँ को शीश नवाय।।

चरण शरण हूँ आ गयी, हे अभिमत दातार।
मात कृपा कर दीजिये, निर्मल बुद्धि उदार।।

महक उठी चंपा जुही, विहँस रहा कचनार।
फिर दस्तक देने लगा, मनसिज मन के द्वार।।

खड़ा साँवरा द्वार पर, करता है मनुहार।
दर्शन हित प्यासे नयन, खोल राधिके द्वार।।

अधर साँवरे के धरी, मुरली करे पुकार।
द्वारे पर साजन खड़े, खोलो मन के द्वार।।