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दोहा सप्तक-97 / रंजना वर्मा
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बेटी ही जगतारिणी, बेटी जग आधार।
पत्थर होगा वो हृदय, जो न लुटाये प्यार।।
झाँसी की रानी बनी, रिपुदल का आतंक।
चली मिटाने जो लगा, परतन्त्रता कलंक।।
रण में बढ़ हुंकारती, फूँक रही थी शंख।
सुना फिरंगी सैन्य ने, टूटे आशा - पंख।।
गीली गीली रात में, निकली सीली भोर।
पीली पीली धूप भी, गयी गगन की ओर।।
उत्तर के नागर सभी, ताप रहे हैं आग।
चिथड़ा कथरी ओढ़ के, रात रही है जाग।।
गीली गीली सर्दियाँ, लगीं कँपाने हाड़।
बार बार शीतल पवन, खड़का रही किवाड़।।
आया था चुपचाप ही, चला गया चुपचाप।
खौल रहा दिल उठ रही, ठंढी ठंढी भाप।।