दोहा / भाग 1 / विक्रमादित्य सिंह विक्रम
कूल कलिंदी नीप पर, सोहत अति अभिराम।
यह छवि मेरे मन बसो, निसि दिन स्यामा-स्यामा।।1।।
राधापति हिय मैं धरौं, राधापति मुख बैन।
राधापति नैनन लहौं, राधापति सुखदैन।।2।।
वृन्दावन राजैं दुवौ, साजैं सुख के साज।
महरानी राधा उतै, महाराज ब्रजराज।।3।।
फिरि फिरि राधा-कृष्ण कहि, फिर फिर ध्यान लगाइ।
फिरिहौं कुंजन वे फिकिर, कब बृन्दाबन जाइ।।4।।
मेरी करुना की अरज, दीनबन्धु सुनि कान।
ना तर करुनाकर तुम्हैं, कैहै कहा सुजान।।5।।
करुना कोर किसोर की, होर-हरन बरजोर।
अष्टसिद्धि नव निद्धि जुत, करत समृद्धि करोर।।6।।
त्रन समान बज्रहि करत, त्रन कह बज्र समान।
नन्द-नन्द जगबंद प्रभु, औढ़र ढरन अमान।।7।।
नदी नीर तीछन बहै, मेघवृष्टि अति घोर।
हरि बिन को पारहि करै, लै नैया बरजोर।।8।।
प्रनतपाल बिरदावली, राखी आन जहान।
अब मम बार अबारकत, कीजत कृपा निधान।।9।।
निज सुभाय छोड़त नहीं, कर देखौ हिय गौर।
अधम-उधारन नाम तुव, हौं अधमन सिरमौर।।10।।