दोहा / भाग 3 / राधावल्लभ पाण्डेय
जो कराल नरसिंह बन, प्रकटत नहि भगवान।
तौ न बचत प्रह्लाद, नहिं होत असुर अवसान।।21।।
निज दूधहु निज बच्छ कौ, गाय न सकति बचाय।
सिंहिनि पालति पूत निज, पर को रकत पियाय।।22।।
बन्धु सबल की पहुँच भर, निबल मिटाये जाहिं।
बड़े बड़े की छाँह लौं, पौदे पनपत नाहिं।।23।।
निबल पशुन के दूध सों, घर घर माखन होइ।
दुही जाति कहुँ सिंहनी, बन्धु न देखी कोइ।।24।।
सबै सतावत निबल को, सबलन को भय खात।
बकरन की बलि देत सब, बाघ निकट को जात।।25।।
सबल लेत हर निबल को, जन्म सिद्ध अधिकार।
बन्धु बचत कब अंग पर, भोरि भेड़ि के बार।।26।।
सबलहिं मग देवों परत, निबलन को झख मार।
पैदल इक्का लखो या, इक्का मोटर कार।।27।।
बन्धु निरबल को रुदन, कबहु करत नहिं कान।
सबल चुनौती देत जब, तब चौंकन भगवान।।28।।
सबलन जनमत जो जगत, मिटत ईश को नाम।
भये कृष्ण कब कंस बिन, कब रावण बिन राम।।29।।
करत दीनता दीन की, रखवारी बरजोर।
भूलिहु फटकत निकट नहिं, भटकट डाकू चोर।।30।।