दोहा / भाग 4 / महावीर उत्तरांचली
सच को आप छिपाइए, यही बाज़ारवाद
नैतिकता को त्यागकर, हो जाओ आबाद।31।
लक्ष्मी और सरस्वती, दोनों की क्या बात
हंस दिवस में विचरता, उल्लू जागे रात।32।
वहाँ न कुछ भी शेष है, जहाँ गया इंसान
पृथ्वी पर संकट बना, प्रगतिशील विज्ञान।33।
हावी है बाज़ार यूँ, मुश्किल हैं हालात
रिश्ते-नाते गौण हैं, सिमट गए जज़्बात।34।
महंगाई की देंन है, पेट-पीठ हैं एक
जीवनभर फुटपाथ पर, संकट मिले अनेक।35।
कर्म साधते सब यहाँ, जब तक मिला शरीर
अटल समय है मृत्यु का, काल खड़ा गम्भीर।36।
जितना जो गुंडा बड़ा, उसकी उतनी धाक
ऐसे दबंग काटते, लोकतंत्र की नाक।37।
मानवता व्यापार की, बनने लगी मशीन
पैसों के इस खेल में, सब कुछ महत्वहीन।38।
कर्फ़्यू के इस दृश्य का, कैसे करूँ बख़ान
लाशें, ख़ून जगह-जगह, बाक़ी जले मकान।39।
चुप्पी ओढ़ी शाम ने, कर्फ़्यू बना नसीब
दस्तक देती गोलियाँ, लगती मौत करीब।40।