दोहा / भाग 9 / राधावल्लभ पाण्डेय
पूछयों पानी खोय क्यौं, डारी लज्जा धोय।
रोटी रोटी कहि उठी, सदा सुहागिन रोय।।81।।
मगन गन को दान दै, दानी पावत मान।
मानी मरतो मान पर, मुयहु न माँगत दान।।82।।
मान पाइबै हेतु ही, दानी देतो दान।
दान माँगि कै बन्धु पै, मानी देत न मान।।83।।
दानी सरबस दान दे, चाहत है जो मान।
खोवत सोई मान क्यों, रे मंगन लै दान।।84।।
‘बन्धु’ चहै जो दुनी में, दानी साँचो मान।
तो मनाय मानी मनहिं, बिन माँगै दे दान।।85।।
दानी सों कछ माँगि कै, ‘बन्धु’ पाइबो दान।
अपनो वाको दुहुन को, करना है अपमान।।86।।
जाहि साध कछु देन कौं, ‘बन्धु’ आपु दे दान।
माँगन को पथ देखि के, ब्यर्थ न खोवे मान।।87।।
न्याय तुला पर तौलिए, लखिए कौन महान।
दान दानि को ‘बन्धु’ वर, या मानी को मान।।88।।
नीरसता बरसति निरी, रह्यी न रस को नेम।
भेद नीनि जिमि राष्ट्र में, हरत आपुसी प्रेम।।89।।
बड़ी राति बहु हिममयी, लहि हिमन्त को फेर।
अन्यायो के राज में, यथा बढ़त अन्धेर।।90।।