दोहे-4 / अमन चाँदपुरी
मुझे अकेला मत समझ, पकड़ न मेरा हाथ।
मैं तन्हा चलता नहीं, दोहे चलते साथ।।
नैन-नैन से मिल गए, ऊँची भरी उड़ान।
चाल-ढाल बदली 'अमन', गोरी हुई जवान।।
अंधा रोए आँख को, बहरा रोए कान।
इक प्रभु मूरत देखता, दूजा सुने अजान।।
प्रियतम तेरी याद में, दिल है बहुत उदास।
नैनों से सानव झरे, फिर भी मन में प्यास।।
जब होती है संग तू, और हाथ में हाथ।
झूठ लगे सारा जहाँ, सच्चा तेरा साथ।।
पाखंडों को तोड़कर, बिना तीर-शमशीर।
जीना हमें सिखा गया, सच्चा संत कबीर।।
बड़ी-बड़ी ये कुर्सियाँ, सत्ता का ये मंच।
राजनीति के नाम पर, होता रोज प्रपंच।।
रूखे-सूखे दिन रहे, मगर रसीली रात।
सोना, सपना, कल्पना, और प्रेम की बात।।
इंसानों ने कर दिया, सबका निश्चित धाम।
कण-कण में अब हैं नहीं, अल्लाह हों या राम।।
बिल्कुल सच्ची बात है, तू भी कर स्वीकार।
ज्यों-ज्यों बढ़ती दूरियाँ, त्यों-त्यों बढ़ता प्यार।।