44.
पथ सारे महके लगें, मन में उठे हिलोर। 
दो दीवाने जब चले, प्रेम-डगर की ओर। 
45.
दूर फिज़ाओं में घुले, शोख़ प्रेम के रंग। 
धरती-अम्बर से मिले, जब हम दोनों संग। 
46.
लिखती तुझ पर काव्य जब, चुरा पुष्प से रंग। 
छलक-छलक जाती तभी, मन में भरी उमंग। 
47.
लाख छुपाने से कभी, छुपे नहीं जज़्बात। 
व्याकुल नैना कह रहे, मन की सारी बात। 
48.
बंधन मन के जब जुड़ें, कहाँ रहे फिर होश। 
आँखें ही तब बोलतीं, अधर रहें ख़ामोश। 
49.
तुमसे ही ये मन जुड़ा, दूर रहो या पास। 
सुधियाँ देती हैं मुझे, मोहक मधुर सुहास। 
50.
उल्टी नैया प्रेम की, उल्टी इसकी रीत। 
जो डूबा सो पार हो, ऐसी होती प्रीत। 
51.
जीवन में अब आ घुले, मोरपंख से रंग। 
ख़ुशियों से आँचल भरा, जब तुम मेरे संग। 
52.
तेरे-मेरे बीच का, बंधन है बस नेह। 
मन तुझसे मंदिर हुआ, आँखें तेरी गेह। 
53.
तुमसे ऐसे है जुड़ा, मन का ये सम्बंध। 
फूलों में जैसे बसी, मोहक-मधुर सुगंध। 
54.
हिय में हो तुम ही बसे, आये नैैनन द्वार। 
पढ़ लो मुखड़ा साथिया, ये ताजा अख़बार। 
55.
दीप जलाती नेह का, हर पल आठो याम। 
कुटिया-सा तेरा हृदय, मेरा चारो धाम।