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दोहे-8 / मनोज भावुक

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मरल आस-विश्वास जो अउर गइल मन हार।
तब बूझीं जे आदमी, भरलो-पुरल भिखार॥41॥

परदेसी 'भावुक' पिया, रोजे करिह· भेंट।
हमहूँ इंटरनेट पर, तूहूँ इंटरनेट॥42॥

पढ़े बदे छूटल रहे, कबहूँ आपन देश।
अब धंधा-पानी बदे, चलनी फिर परदेश॥43॥

रोजे रास्ता बदले के जेकरा बाटे रोग।
धोबी के कुत्ता बने, अक्सर ऊहे लोग॥44॥

मूक साधना में बहुत, ताकत होला मीत।
भीड़-भाड़ से तू अलग, रहि के गावs गीत॥45॥

बड़-बुजुर्ग कहलें जहाँ, देखल हवे गुनाह।
'भावुक' हो मन ले गइल, उहवें रोज निगाह॥46॥

'भावुक' जे ना हो सकल, ओकर का अफसोस।
कवना-कवना बात के, लेबs माथे दोष॥47॥

माई रे जाई कहाँ, देवता पूजल तोर।
कहियो त होइबे करी, हमरो खातिर भोर॥48॥

मारे के बा बाज के, पीटत बानी ढोल।
गौरइयन के झुंड पर, दागत बानी गोल॥49॥

भाला लेके भोंक रहल बा जे बारम्बार।
ओहू दुश्मन के पुजे, भारत के सरकार॥50॥

दुनिया चाहे जे कहे, सभकर खींचे ध्यान।
चंचल, अल्हड़ देह आ, मधुर-मधुर मुस्कान॥51॥

हमरा मन में बा उठल तहरे काहे चाह।
दिल में अपना सोच के फेरs तनी निगाह॥52॥

चलनी में पानी भरत, बीतल उम्र तमाम।
तबहूँ बा मन में भरम, कइनी बहुते काम॥53॥