भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहे: उर्जा संरक्षण / विकास पाण्डेय
Kavita Kosh से
बिजली सबको चाहिए, सुबह दोपहर शाम।
बिन बिजली होते नहीं, अब बहुतेरे काम॥
ऊर्जा सभी बचाइए, बालक युवा वृद्ध।
सुखमय सबका कल रहे, इच्छित होवे सिद्ध॥
पंखे, एसी, हीटर सब, चलते हैं अविराम।
इनको तभी चलाइये, जब हो इनका काम॥
कोयला व यूरेनियम, शिला तेल की खान।
सभी पुनः अप्राप्य हैं, हर पल रखिये ध्यान।
कितने वन निर्वन हुए, उजड़े कितने गाँव।
जलविद्युत का देश में, हुआ तभी फैलाव॥
धरती पर है जल रही, प्रदूषण की आग।
सब मिलकर कुछ कीजिये, बचे सुनहरा बाग॥
ऊर्जा के प्रति राखिये, बहुमूल्यता बोध।
इसके संरक्षण के लिए, करते रहिए शोध।
ईंधन खपत घटा सकें, खींचें नई लकीर।
हम कहलायेंगे तभी, नव भारत के वीर॥