दोहे: फागुन के / सुनीता शानू
1
डाल-डाल टेसू खिले, आया है मधुमास।
मै हूँ बैठी राह में, पिया मिलन की आस॥
2
फागुन आया झूम कर, ऋतु वसन्त के साथ।
तन-मन हर्षित कर रहे, मोदक दोनों हाथ॥
3
मधुकर लेकर आ गया, होठों पर मकरंद।
गाल गुलाबी हो गये, हो गई पलकें बंद॥
4
तितली जैसी मैं उड़ूँ, चढ़ा फाग का रंग।
गत आगत विस्मृत हुआ, चढी नेह की भंग॥
5
इन्द्र धनुष के रंग में, रंगी पिया मैं आज।
संग तुम्हारे नाचती, हो बेसुध, बिन साज॥
6
रंग अबीर गुलाल से, धरती हुई सतरंग।
भीगी चुनरी पर चढ़ा, रंग पिया के संग॥
7
अंग-अंग से उठ रही, मीठी-मधुर सुवास।
टूटेगा अब आज तो, तन-मन का उपवास॥
8
पिघले सोने सा हुआ, दोपहरी का रंग।
और सुहागे सा बना, नूतन-प्रणय-प्रसंग॥
9
गली-गली रंगत भरी, कली-कली सुकुमार।
छली-छली सी रह गई, भली-भली सी नार॥