भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहे / ललित किशोरी
Kavita Kosh से
सुमन वाटिका-विपिन में, ह्वैहौं कब मैं फूल।
कोमल कर दोउ भावते, धरिहैं बीनि दुकूल॥
कब कालीदह कूल की, ह्वैहौ त्रिबिध समीर।
जुगल अंग-ऍंग लागिहौं, उडिहै नूतन चीर॥
कब कालिंदी कूल की, ह्वैहौं तरुवर डारि।
'ललित किसोरी' लाडिले, झूलैं झूला डारि॥