भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो-जहाँ से मावरा हो जाएगा / 'असअद' भोपाली
Kavita Kosh से
दो-जहाँ से मावरा हो जाएगा
जो तेरे ग़म में फ़ना हो जाएगा
दर्द जब दिल से जुदा हो जाएगा
साज़-ए-हस्ती बे-सदा हो जाएगा
देखिए अहद-ए-वफ़ा अच्छा नहीं
मरना जीना साथ का हो जाएगा
बे-नतीजा है ख़याल-ए-तर्क-ए-राह
फिर किसी दिन सामना हो जाएगा
अब ठहर जा याद-ए-जानाँ रो तो लूँ
फ़र्ज़-ए-तन्हाई अदा हो जाएगा
लहज़ा लहज़ा रख ख़याल-ए-हुस्न-ए-दोस्त
लम्हा लम्हा काम का हो जाएगा
ज़ौक़-ए-अज़्म-ए-बा-अमल दरकार है
आग में भी रास्ता हो जाएगा
अपनी जानिब जब नज़र उठ जाएगी
ज़र्रा ज़र्रा आईना हो जाएगा