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दो अक्षर / शशि पाधा
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					मानस के कागद पर प्रियतम
    दो अक्षर का गीत लिखा
पहला अक्षर नाम तुम्हारा
  दूजा अक्षर प्रीत लिखा  
   
भूल गई मैं बाकी  सब कुछ
जब से तुम संग प्रीत लगी
छोड़  आई सब स्याही कागद
अब मिलने की आस जगी 
 नयन झरोखे खोल के देखूं
   तू आया कि चांद दिखा ? 
अब न कोई आधि-व्याधि
अब न कोई साध रही
अब न मोह की बन्धन बाधा
नदिया यूं निर्बाध बही 
 नाम तेरे की माला पहनी
  जपने की तू रीत सिखा   
दो अक्षर में सब सुख बसता
जग को क्या समझाऊँ मैं
न जानूं कोई जन्तर मन्तर
सुलझी , क्यों उलझाऊँ मैं 
 न मैं जोगन, न वैरागन
  प्रेम की अविरल दीपशिखा ।
 
	
	

