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दो कविताएँ / सौरभ
Kavita Kosh से
एक
जब मनुष्य नहीं था
तब कोई इबादत नहीं थी
नहीं थी दरगाह, मन्दिर, मस्जिद भी नहीं
फिर खुदा ने इन्सान बनाया
इन्सान ने महल बनाये
पेड़ काट
मंदिर बनाए मस्जिद बनाई
मार-काट मचाई
शायद अब वह चैन से बैठा है।
दो
सदियों से इबादत कर रही है पृथ्वी
सूय, यह पेड़
मनुष्य कुछ समय से इबादत कर
बन रहे महान।