भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दो क़दम आप क्या साथ चलने लगे / रविकांत अनमोल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दो क़दम आप क्या साथ चलने लगे
ख़ाब कितने निगाहों में पलने लगे
             
मंज़िलें खुद मिरे पास आने लगीं
हमसफ़र बनके तुम साथ चलने लगे
             
तेरी नज़रों का मुझको सहारा मिला
लड़खड़ाते क़दम फिर संभलने लगे
             
अश्क थे जो मिरी आँख की झील में
आबशारों<ref>झरनों</ref> की मानिन्द<ref>जैसे</ref> ढलने लगे
             
भीगी आँखों से उसने कहा अलविदाअ
मेरी आँखों से आँसू निकलने लगे
                                   

शब्दार्थ
<references/>