दो चार कदम साथ बढ़ाने के लिये आ / रंजना वर्मा
दो चार कदम पाँव बढ़ाने के लिये आ
राहों पे मेरी साथ निभाने के लिये आ
माना कि मुहब्बत का तुझे इल्म ही नहीं
झूठा ही सही प्यार जताने के लिये आ
बाक़ी नहीं अरमान न ख्वाहिश न तमन्ना
आँखों को नये ख़्वाब दिखाने के लिये आ
खामोशियों में कैद तबस्सुम है लबों का
फिर से जरा मुस्कान खिलाने के लिये आ
दुश्मन ये मुफ़लिसी कभी जीने नहीं देती
तू जिंदगी की आस बंधाने के लिये आ
जन्मों का किया साथ मगर तोड़ ही दिया
दिल में जो छिपी बात बताने के लिये आ
इतने बहाये अश्क़ नज़र ख़ुश्क हो गयी
आँखों से मेरी अश्क़ बहाने के लिये आ
पल पल में बदलता है कई रंग ज़माना
उल्फ़त की नयी रस्म निभाने के लिये आ
तूफ़ान उमड़ता है नहीं साथ नाख़ुदा
कश्ती जो न कर पार डुबोने के लिये आ