Last modified on 30 जून 2019, at 23:37

दो चार क़दम राह में हज़्ज़ार मसाइल / भरत दीप माथुर

दो चार क़दम राह में हज़्ज़ार मसाइल
मंज़िल को किये देते हैं दुश्वार मसाइल

बनते हैं मेरे वास्ते हर बार मसाइल
किरदार मसाइल कभी गुफ़्तार मसाइल

तेज़ी में हैं , अच्छा है , मगर ग़ौरतलब है
कर दे न कहीं आपकी रफ़्तार मसाइल

अपने तो मज़े हैं मियाँ, औरों से हमें क्या
बनती है इसी सोच की दीवार, मसाइल

रक्खे है अना पाल के हर शख़्स यूँ दिल में
करती है ज़रा बात में दस्तार मसाइल

मिर्ज़ा हो की चौबे ये मसाइल हैं सभी के
आ जाओ की मिलकर करें मिस्मार मसाइल

डरता है किसी बज़्म में तक़रीर से पहले
कर दें न कहीं ‘दीप’ के अश'आर मसाइल