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दो छोटी कवितायें / जोशना बनर्जी आडवानी
Kavita Kosh से
स्पौन्डीलाईटीस का
दर्द उठा कल रात
दराज़ मे गोलियों के
झंकाड़ को फेंटती
रही आनन फानन मे
दवाई नहीं मिली तो
दराज़ की तरफ पीठ
करके वापस लौट आई
लौटने वाले सभी लोग
पीड़ित नहीं होते हैं
एक बड़े से दुकान
मे काँजीवरम साड़ियों
का हुजूम देखा तो
सैकड़ो कुकून शरीर
पर रेंगने लगे यहाँ वहाँ
पिता की याद आई
बचपन की अश्रफियाँ
कानो मे खनकने लगी
फिर याद आया कि
रेशम खुरदुरी देहों पर
फट जाया करता है