भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो तुम्हारे नयन दो हमारे नयन / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
दो तुम्हारे नयन दो हमारे नयन।
जब हुए चार तो बन गयी अंजुमन॥
जब तुम्हारे नयन से मिले सांवरे
ये विकल नैन मेरे हुए बावरे
ये जगत शुष्क प्यासा मरुस्थल लगे
नाम लूँ तो मिले प्रीति की छाँव रे।
दो तुम्हारे नयन दो हमारे नयन
हैं प्रणय पंथ का कर रहे अनुगमन॥
आज देने प्रणय की परीक्षा चले
पर नयन बावरे हैं प्रतीक्षा खले
नित्य पलकों की छाया में जीते रहे
कुछ हँसे कुछ रुदन आँसुओं में पले।
दो तुम्हारे नयन दो हमारे नयन
स्वप्न सम्भार को कर रहे हैं वहन॥
प्रीति की रीति ये जानते ही नहीं
हैं किसी भीति को मानते ही नहीं
सांवरे प्रीति की रीति जो जानते
तो कभी प्रेम हठ ठानते ही नहीं।
दो तुम्हारे नयन दो हमारे नयन
हैं चलाते अनोखे नये ही चलन॥