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दो पहर: दो रूप / नीरजा हेमेन्द्र
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शाम होते ही
पार्कों में, सड़कों पर, बाजारों में
चहल-पहल बढ़ जाती है
लोगों के हुजूम बतियाते, मुस्कराते
टहलते रहतें हैं
शाम की रंगीनी में
लोग कुछ पलों के लिये
अपने आप को भी भूल जातें हैं
किन्तु रात...
शाम का ही बदलता रूप
सड़कों पर सन्नाटा...
बाजारों में सन्नाटा...
पार्कों में चुप्पी छा जाती है
शाम के परिवर्तित रूप
रात को लोग क्या कभी
स्वीकार करेंगे।