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दो पहलू / शीतल साहू

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हाँ ये सत्य है
हर पक्ष का
हर तथ्य का
हर बात का
हर परिस्थिति के होते है दो पहलू।

प्रकृति रखती है सममिति
हर चीज की करती है संतुलन।

मृत्यु है तो जन्म भी तो है
अज्ञान है तो ज्ञान भी तो है
असत्य है तो सत्य भी तो है
भोग है तो त्याग भी तो है
दासत्व है तो स्वामित्व भी तो है।

जहर है तो अमृत भी तो है
अपकर्ष है तो उत्कर्ष भी तो है
अपयश है तो यश भी तो है
घृणा है तो प्रेम भी तो है
मैं है तो हम भी तो है।

गरीबी है तो अमीरी भी तो है
दुख है तो सुख भी तो है
कष्ट है तो आनंद भी तो है
खाई है तो पहाड़ भी तो है
रात है तो दिन भी तो है।

अगर सवाल है तो जवाब भी तो है
निष्क्रियता है तो सक्रियता भी तो है
आलस्य है तो कर्मशीलता भी तो है
नकारात्मकता है तो सकारात्मकता भी तो है
संघर्ष है तो उपलब्धि भी तो है।

बात है तो बस चुनाव की
चाहे करें विवेक से
चाहे करें भावना से
चाहे करें प्रेरणा से
चाहे हो परिस्थिति जन्य।

हम जो थे, जो है और जो होंगे
वे सब हमारी चुनाव पर है निर्भर
परिस्थितियाँ तो आएगी ही, असमंजस होगी ही
दुविधा तो आएगी ही, उलझन तो होगी ही।

जीवन एक ऐसी ही यात्रा है, जहाँ
कभी धूप होती है कभी छांव
कभी एका होती है तो कभी बिखराव
कभी दिन होती है तो कभी रात
कभी ख़ुशी आती तो कभी गम।

हमारा चयन ही
हमारी नियति निर्धारित करती है
हमारा भाग्य बनाती है
हमे शिखर पर पहुँचा देती है
या गर्त में गिरा देती है।

आप सीख सकते है, चाहे तो
भैस से बैर या जीवटता
बिच्छू से डंक मारना या फुर्ती
हाथी से दंभ या संगठन शक्ति
गिरगिट से छल या हर परिस्थिति में अनुकूलन

केकड़े से टांग खींचना या हर ओर से सतर्क रहना
कौवे से अवसरवादिता या लक्ष्य पर पैनी नजर
कुत्ते से चाटुकारिता या वफादारी
सिंह से वर्चस्व या निडर नेतृत्व।

मानव का चयन और उसकी प्रवृत्ति ही है
जो उसे साधु बनाता है या शैतान
जो उसे आम बनाता है या महान
जो उसे इंसान बनाता है या भगवान।

इसलिये शायद किसी ने सच ही कहा है कि
परिस्थिति कैसी भी हो
आप दौड़िये
अगर दौड़ नहीं सकते तो चलिए
अगर चल नहीं सकते तो रेंगीए
लेकिन कभी रुकिए मत, हमेशा आगे बढ़ते रहिये।