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दो पुंज / दिनेश कुमार शुक्ल
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दो प्रकाश के पुंज गगन की गहराई में
एक-दूसरे को सदियों से खोज रहे थे
चकाचौंध में एक-दूसरे को भरमा कर
रहे भटकते वे अनन्त की यात्राओं में
चलते-चलते आखिर में जब मिले अचानक
मिलना, मिलना न था, ज़ोर से टकराना था
चूर-चूर हो जाना और बिखर जाना था