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दो फाड़ / राजूराम बिजारणियां
Kavita Kosh से
घर रै आंगणैं
डाइनिंग टेबल रै चारूंमेर
न्यारी न्यारी थाळ्यां में
नींव भरता
नित बणै
न्यारा निरवाळा घर!
घर फूटरा
घर सांतरा
भींत अेकल
बारणां आंतरा।
चाणचक...
जूनी छात बिचाळै आई तरेड़
छात रै खूणैं
धरी मटकी सूं
रीतग्यो पाणी
मेह रो
नेह रो
प्रीत पाळती
देह रो!
घर तो अजै है
न्यारा-निरवाळा
फूटरा-सांतरा
आंतरा-आंतरा
पण..केई जोड़ी आंख्यां
मूंडो फाड्यां जोवै
बिचाळै पड़ी
हुयोड़ी दो फाड़
जूनी छात नै।