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दो बातें / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
1.
आकाश में तुमने जो दिया टाँग दिया ािा
अब मंद हो चली है उसकी लौ कहाँ हो तुम?
कुछ और भरो नेह और बाती को जगाओ
आँखों से अब गगन को सँभालो जहाँ हो तुम!
2.
आकाश पे तारों से लिखी रात ने इक नज़्म
आई सुबह नसीम और उसको मिटा दिया
अपना भी इक फ़साना था शामिल किताब में
आकर नये निज़ाम ने उसको हटा दिया
छोड़ो चलो ये ग़ैब की बातें हैं इनका क्या !
जिनको जगाना था उन्हें हमने सुला दिया
हमसे जो हुआ तंज़ में दुश्मन से भी न हो
धोके से हमने ग़ैर का घूँघट उठा दिया !