दो मिनट का मौन / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल
पढ़ी अनंत तारीफें
जिक्र किया भलमनसाहत का
उनकी दयालुता का
उनके जीवन के संघर्ष का
और सब गुणों का
कितनी शुद्ध और उज्ज्वल थी मृत आत्मा
शान्ति के लिए रखा दो मिनट का मौन
स्तब्ध-से सब उठ खड़े हुए
हाथ बाँधकर नजरें नीचे झुकाये
ताकि देख लें अच्छी तरह से
अपने नीचे की जमीन
नहीं रहेगी जो एक दिन
उनके नीचे भी
हर कोई बुदबुदा रहा था
कुछ-ना-कुछ
अपने इष्ट के बारे में
और क्या पता क्या-क्या?
किस-किस के बारे में
या कब इस खत्म ना होने वाले
दो मिनट के मौन का
अंत कब होगा
इतनी तो अच्छाइयाँ भी नहीं थीं
कुछ ने तो
ऐसा भी जरूर सोचा होगा
ना ही इतनी शांति की
जरूरत है मृत आत्मा को
देह के दुखों से छूट
वो भी खिलखिलाना चाहती है
मौन रहकर मृत आत्मा से
किसके लिए,
ये कौन-सा संवाद है?
कितना भारी लगता है
दो मिनट का मौन
समय बीतता ही नहीं
घड़ी की सूइयाँ जैसे रुक जाती हैं
इस मौन को बनाये रखने में
कितनी बेचैनी उमड़ती है
किसी के आँसू उमड़ना चाहते हैं
किसी की हँसी
मन स्थिर कैसे रहे
समाप्त होते ही मौन
कैसे भारी-सी साँस लेते हैं सब
जैसे चल पड़ा हो रुका हुआ समय
जैसे चल पड़ी हो रुकी हुई जिंदगी।