भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दो योद्धा थे / कात्यायनी
Kavita Kosh से
दो योद्धा थे ।
जंगल में लड़ते रहे
द्वन्द्वयुद्ध
अन्तिम साँस तक ।
प्राणों की बाज़ि के
पीछे थी कोई बात ।
किसी ने न देखा ।
पर यह कोई
मोर का नाचना थोड़े ही था ।
रचनाकाल : जुलाई 1997