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दो शरीर / ओक्ताविओ पाज़
Kavita Kosh से
दो शरीर सन्मुख
हैं दो लहरें कभी-कभी
रात है समुद्र तब
दो शरीर सन्मुख
हैं दो पत्थर कभी-कभी
रात मरुभूमि तब
दो शरीर सन्मुख
हैं दो जड़ें कभी-कभी
गुँथी हुई रात में
दो शरीर सन्मुख
हैं दो चाकू कभी-कभी
रात है चिंगारी छोड़ती
दो शरीर सन्मुख
हैं दो तारे टूटते
रिक्त आकाश में