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दो सिरे / अमिता प्रजापति

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ज़िन्दगी की कमीज़ के
दोनों सिरों पर लगे

काज और बटन की तरह हैं हम

वक़्त को
जब झुरझुरी आती है
इस कमीज़ को ढूंढ़ कर
पहन लेता है