भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दो हृदय / कविता कानन / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यार पगे
दो हृदय
उड़ चले गगन की ओर
हो कर उन्मुक्त
सबसे वियुक्त
बांध कर
सतरंगी कामनाओं के
ढेरों गुब्बारे
छू लेंगे मानो
अनन्त के छोर ।
ये कामनाएं
असीम भावनाएँ
ले जायेंगी इन्हें
न जाने किस ओर।
मिलेगा इन्हें
कोई सुन्दर, सुभग उपवन
सुनहरा भविष्य
या फिर
जलते अंगारे
उफनती नदी
या शुष्क रेगिस्तान।
छिपा है
सब कुछ
भविष्य के गर्भ में ।
नहीं है कोई चिंता
सामने है
केवल वर्तमान
दो दिल
और सतरंगी स्वप्नों के
ढेर सारे
रंगीन गुब्बारे ।
बचना
कहीं फूट न जायें.....