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दो / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
उड्यो बगै सबद
-सड़क-सड़क
रड़क काढ दी लोगां तेल री
कविता चीज बणगी हंसी-खेल री
मार न्हांखी लाण नैं
-बेटां कड़क
उड्यो बगै सबद
-सड़क-सड़क