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दौड़ती हांफ़ती सोचती जिंदगी / सतपाल 'ख़याल'

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दौड़ती हाँफ़ती सोचती ज़िन्दगी
हर तरफ़ हर जगह हर गली ज़िन्दगी

हर तरफ़ है धूल है धूप है दोस्तो
धूल और धूप में खाँसती ज़िन्दगी

लब हिलें कुछ कहे कुछ सुने तो कोई
बहरे लोगों में गूंगी हुई ज़िन्दगी

दिल उसारे महल सर पे छ्त भी नहीं
दिल से अब पेट पर आ गयी ज़िन्दगी