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दौड़ कहाँ? / मंजुश्री गुप्ता
Kavita Kosh से
सारे तीरथ करके आये
मन की थाह न ली तो क्या?
इधर उधर बाहर को दौड़े
घर की बात न की तो क्या?
हर एक को खुश करने में
खुद की ख़ुशी नहीं पहचानी
दुनिया भर को वक़्त दिया
अपनों को दिया बिसार तो क्या?
धन ,पद ,यश और काम की दौड़े
मंज़िल कभी मिली है क्या?
क्या राजा क्या रंक धरा पर
अंत सभी का एक न क्या?