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दौड़ रहे हैं और हांफ रहे हैं लोग / सांवर दइया
Kavita Kosh से
दौड़ रहे हैं और हांफ रहे हैं लोग।
झूठे दिलासे फिर बांट रहे हैं लोग।
भीतर-बाहर हर तरह से पिटे हैं जो,
घूम फिर उनको ही डांट बांट रहे हैं लोग!
गरूर बढ़ा इतना कि रौंदा धरती को,
आकाश पर चढ़ अब कांप रहे हैं लोग!
मिलते ही गला पकडने की कहते थे,
अब सामने बगलें झांक रहे हैं लोग!
अब कौन करेगा किसी का यकीन यहां,
जहां भी देखो बन सांप रहे हैं लोग!