भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दौरे-ख़िज़ाँ हो या कभी दौरे-बहार हो / दरवेश भारती
Kavita Kosh से
दौरे-ख़िज़ाँ हो या कभी दौरे-बहार हो
इन्सां वही है इनसे न जो दरकिनार हो
गुज़रेगी उसपे क्या कि वही दे दग़ा उसे
जिसके लिए दिल उसका बहुत बेक़रार हो
चाहत वही है, दिल में बसा जो वह बस गया
क्या फ़र्क़ है वह फूल कोई हो कि ख़ार हो
बाला-ए-ताक़ रख दे जो आईने-मुल्क ही
इतना जुनून भी तो न सर पर सवार हो
ढाता है साद: लौहों पर जो नित नये सितम
काश! उनके हाथों ही वह कभी संगसार हो
हाकिम के दबदबे में रहे कोई कब तलक
अब उसके ज़ुल्म का कोई कब तक शिकार हो
हो बन्दिशे-ख़याल से ज़ेबा अगर कलाम
'दरवेश' बोलता हुआ वह शाहकार हो