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द्यूत क्रीड़ा-गृह है, सजा हुआ / तारा सिंह
Kavita Kosh से
- दुनिया के इस द्यूत क्रीड़ा- गृह में
- मामा शकुनि के चतुर- पास में
- परम-पूज्य पितामह हैं मौजूद
- सिंहासन पर बैठी गांधारी सी
- सासें भी हैं, जो स्वयं बाँध रक्खी हैं
- आँखों पर अंधेपन की पट्टी
- धृतराष्ट्र सा मधुर वचन बोलने वाला
- ससुर भी है नेत्रहीन, गंभीर, बधिर
- तुम्हारा प्यारा देवर, दुःशासन भी है
- जो आँखों की पुतलियों में छुपाये हुए है
- तुम्हारे चीर-हरण का भावी तसवीर
- सत्यवादी युधिष्ठिर सा पति भी है
- तुमको दाव पर लगाने को है आतुर
- श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन भी है, जो
- ला देगा तुमको सुभद्रा सी सौतन
- किस बात की कमी रह गई है
- इस द्यूत क्रीड़ा-गृह में पांचाली
- जो तुम अभी तक नहीं आई
- विदुर सा नीतिशास्त्र का ज्ञाता
- काकाश्री इस दुनिया में अब नहीं रहे
- उनसे तुम्हारा परिचय करबाऊँ कैसे
- हाँ, दुःशासन सा देवर तुम्हारा
- चीर- हरण को यहीं है बैठा
- कुरूवंश के रखवाले द्रोणाचार्य
- और पितामह भी यहीं हैं
- सभी शांत, आतुर पलकें बिछाए
- अपने आसन पर बैठे हुए हैं
- सिर्फ तुम्हारा चीर- हरण होना है बाकी
- अब न कोई व्यास, महाभारत रचेगा
- न ही कृष्ण किसी को बहन बनायेगा
- अब द्रौपदी कम , सीता यहाँ ज्यादा आयेगी
- क्योंकि हर सीता को वन में जाना है
- और अग्निकुंड में कूदकर पातिव्रत का
- सबूत देकर भी, धरती में समा जाना है
- पर अब दुर्योधन के शासन-काल में
- द्रौपदी का आना नितांत आवश्यक है
- जो अपने पति से कह सके
- अपनों की छाती का लहू ला दो
- मुझे शोणित-स्नान करना है
- पर अफसोस तो यह है कि
- द्रौपदी को भीम सा पति मिलना मुश्किल है
- द्रौपदी जब तक द्यूत क्रीड़ा-गृह में
- चीर-हरण करबाने नहीं आयगी
- तब तक दुर्योधन, दुःशासन और शकुनि
- ऐसे ही द्यूतशाला को सजाते रहेंगे
- द्रौपदी के हमशक्ल का चीरहरण होता रहेगा
- क्योंकि कृष्ण तुमको छोड़कर और
- किसी को बहन नहीं मानते, वरना एक बार
- फिर से नारी- रक्षा को यहाँ नहीं आते