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द्रोण को पहचानिए / संदीप द्विवेदी

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झरनों के जल झंकार में
शिला पृष्ठ को जानिए
अर्जुन के लक्ष्य विवेध में
द्रोण को पहचानिए..

नदियों की बहती अथक धारा
चलती मधुर एक साज पर
सागर से होता मिलन कैसे
रहती नही जो ढाल पर
ग़र कोई आगे बढ़ा है
अपने कदमो में खड़ा है
होती है कोई ढाल ही
जिसने उसे पहचान दी
मेहनत के महलों में छिपे
उत्साह को पहचानिए
 अर्जुन के लक्ष्य विवेध में
द्रोण को पहचानिए....

बिन तराशे रत्न की
कब चमक दुगुनी हुई है
कब दिए की लौ कहीं
निर्वात में रोशन हुई है
आंच गुरु की बिन पड़े
निखरी नही प्रतिभा कोई

जो दीप्त हो गुरु के बिना
है नही आभा कोई
हर लक्ष्य में छिपे
उत्साह को पहचानिए
अर्जुन के लक्ष्य विवेध में
द्रोण को पहचानिए...