भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
द्रोण / गिरीष बिल्लोरे 'मुकुल'
Kavita Kosh से
द्रोण,
तुम अर्जुन के पायदान,
हो सकते हो।
दुर्योधन का अभिमान,
हो सकते हो?
किसी को कृतघ्न कह सकते हो।
मुझे कदापि नहीं।
द्रोण -
परोक्ष ही सही-
तुम्हारा आशीष मैं -
सब कुछ कर सकता हूँ।
एक कृतघ्नता को छोड़कर।
गुरुवर,
मुझे देखो-कथित शिष्यों में जोड़कर-
देखना- मैं खरा उतरूँगा-
एक बार- माँग लो- अगूँठा/हाथ/कुछ भी-
भले आज़माने को।
एक - अदद - कृतघ्नता को छोड़।