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द्रौपदी की त्रासदी / सुधा चौरसिया
Kavita Kosh से
द्रौपदी चीख नहीं सकी
चिल्ला नहीं सकी
प्रतिवाद नहीं कर सकी
लेकिन जीवन भर
अपने को बाँट-बाँट कर
काट-काट कर, परोसती रही
क्यों, मैं पूछती हूँ क्यों?
क्या यह कुन्ती का आदेश मात्र था?
या उसकी नियति?
नहीं, यह उसकी खुद की
विवेक शून्यता, उसकी भीरुता थी
जो उसको सम्पूर्णतः जीने नहीं दिया
कहीं न कहीं से अपने लिए
अपराधिनी बनी रही
अपराध भावना से व्यथित
उसने अपने दो टुकड़े किये
हृदय को अलग
और शरीर को अलग
ये दो टुकड़े
आज तक कुहक रहे हैं
अपनी सम्पूर्णता के लिए...