द्रौपदी नोच डाली गयी घर से सीता निकाली गयी / अभिनव अरुण
द्रौपदी नोच डाली गयी घर से सीता निकाली गयी
आज या कल के उस दौर में मैं कहाँ कब संभाली गयी
सब्र तक मुझको मोहलत मिली कब कली अपनी मर्ज़ी खिली,
एक सिक्का निकाला गया मेरी इज्ज़त उछाली गयी
लड़का लूला या लंगड़ा हुआ गूंगा बहरा या काला हुआ,
मुझसे पूछा बताया नहीं सबको मैं ही दिखा ली गयी
दौर कैसा अजब आ गया एक सबको नशा छा गया,
सब हैं पैसे के पीछे गए सबकी होली दिवाली गयी
है न चौकी पुलिस की जहां चाय पीते रहे तुम वहाँ,
एक काली सफारी रुकी एक लड़की उठा ली गयी
दिन में जो थी बरामद हुई रात भर थाने में वो रही,
रात भर जांच उसकी हुई तुमने सोचा बचा ली गयी
चार कसमों की बाते हुईं चार वादों की रातें हुई,
चार तोह्फ़े दिखाए गए इस तरह वो मना ली गयी
बाप की सांस टूटी ही थी माँ को बंधक बनाया गया,
फिर अंगूठा लगाया गया फिर वसीयत बना ली गयी
अपने सारे पराये हुए लोग भाड़े के लाये हुए,
मौत तनहाइयों में हुई और रोने रुदाली गयी