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द्रौपदी प्रसंग (फाग) / रामराज

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टेक- बरसैं घनश्याम बनी अखियाँ, दु:ख द्रुपद सुता कँह घेरे
हरी हरि टेरे॥
भीषम द्रोण नीच किये नैना, पाँचौ पती मोरी ओरियाँ लखैं न
दुशासन चीर गहे रे॥
नृप कलिंग अरू अपर नरेसू, भय बस कोउ न करत उपदेशू॥
कुरूपति मोरी हरन चहत लजिया, मुरलीधर अब न बचे रे
हरी हरि टेरे॥1॥

हमैं उघारि देखि कइसै पइहैं, प्यारे भीम सुधिया मोरी लेइहैं
तेउ अब मौन गहे रे॥
राधा रमण शरण मोहि जानी, अस कहि रोवति पांडव कै रानी॥
गिरिवर धर संतन मन बसिया, सुमिरत दइ हाँक करेरे
हरी हरि टेरे॥2॥

सुनतै टेर जसुदा के कन्हैया, पहुँचे जहाँ घेरी जइसै गइया
परी बधिकन्हे के फेरे॥
बसन रूप धरि बसन सुहायन, नए नए चरित करत नारायण॥
रंगरेज बने ब्रज के बसिया, रंग एक से एक नये रे
हरी हरि टेरे॥3॥

द्रुपद सुता कै चीर घटै न, दस हजार गज बल की चलै ना
भये अचरज बहुतेरे॥
‘रामराज’ जय जय बनमाली, मनावति भरि लोचन पांचाली॥
पांडव लखि सकल भये सुखिया, बरसैं सुर सुमन घनेरे
हरी हरि टेरे॥4॥