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द्वारिकाधीश वन्दना / यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

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द्वारकेश वंदन करों, हरों सकल तन-ताप
अब नहीं जानों और कछु, जोग जाग तप जाप
जोग जाग तप जाप, कियें नहिंमन संतोसौ
रोसौ, पोसौ भलें आप कौ मोइ भरोसौ
कवि 'प्रीतम' कर भेंट पत्र फल फूलरूचन्दन
द्वारकेश निसियाम तिहारौ करौं सु वंदन


सोभित सजीलौ सुचि स्वर्णिम सिंहासन पै
साज सजी लक्ष्मी वाम बाम छबि छाजै है

अमित अनूप रूप उपमा न पाई कहूँ
देखि कें अनंग अंग कोटि कोटि लाजे है


दर्सन कारण हेतु भक्त भीर भारी होत
भावुकन भाव अष्ट भूरि भव्य भ्राजै है

'प्रीतम' पियारे सब दूसन हरन वारौ
भूसन हमारौ द्वारकेश जू बिराजै है


मंगल मंगला कीने ते होत, श्रिंगार ते राज पै राजत है नर
ग्वाल ते गो प्रतिपाल बनें अरु राजसी भोग ते भोग मिलें हर
भोग उत्थापन देंय उत्थान औ आरती देख रहै तन सुन्दर
'प्रीतम' सैन की झाँकी अपार निहार मनोच्छित पावत है वर