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द्वारे पाहुन आये हैं / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
बंदनवार
सजाओ
द्वारे पाहुन आये हैं
जब से
बने प्रधान
गाँव से बाहर ही रहते
कहते हैं पर लोग
गाँव की याद बहुत करते
यहाँ
गाँव में
नाली नाले सब उफनाये हैं
गुर्गे उनके
सभी गाँव में
हैं डंडे वाले
सारे बड़े मकान
यहाँ पर हैं झंडे वाले
झुनिया के
दो भूखे बच्चे
फिर रिरियाये हैं
काफी थे
वाचाल
मगर अब हैं मौनी बाबा
भक्त कह रहे मुझे
न जाना अब काशी काबा
बड़े बड़े
शाहों ने
अपने सर मुंडवाए हैं
बगल गाँव
के लोग
उन्हें बस शंका से ताकें
कभी मिलाएं हाँथ
कभी तो वो बगलें झांकें
कैसे उड़े
कबूतर
उसने पंख कटाये हैं।