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द्वार उसके मैं आया / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / प्रयाग शुक्ल
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द्वार उसके मैं आया, मैंने द्वार खटखटाया ।
मैंने साँकल बजाई, मैंने उसको पुकारा,
अन्धकार में ।
बीते-बीते प्रहर, वो आया नहीं पर,
अरे, द्वार में ।।
भेंट हुई न हुई ।
भले जाऊँ मैं चला ।
लौट जाऊँ हार मैं,
जाऊँ दूर-पार मैं ।
रहे, रहे ये लिखत,
छोड़ जाऊँ इसे मैं —
"अरे, आया था मैं तेरे द्वार में ।"
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल