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द्वार तक आकर / उदयन वाजपेयी
Kavita Kosh से
... और उसके बच्चे
द्वार तक आकर कँपकँपाती है
पवन, ठिठक जाता है प्रभात
वे प्रार्थना की तरह
सो रहे हैं, वह प्रार्थना
की तरह हो रही है