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द्वार में द्वार में द्वार,/ गुलाब खंडेलवाल

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द्वार में द्वार में द्वार,
ओ देवता!
तेरी मूर्ति कहाँ है?
मैं अब थककर  मंदिर की चौखट पर बैठ गया हूँ,
किससे पूछूँ पता?