भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

द्विधा विवशता और प्रेम / प्रभात रंजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज मैं
श्वेत कमल की
एक कली तोड़कर लाया था

सोचा
तुम्हारी राह में रख दूँ,
तुम स्नेह से उठा लोगी।

फिर सोचा
अगर कुचल दो तो-
फिर मैंने तुम्हारी राह में कमल नहीं रखा।

मेरा
हृदय ही जानता है,
मैं तुम्हें कितना चाहता हूँ;
पर मैं
इस पवित्र कमल को
कुचला हुआ नहीं देख सकता।

मेरी
इस विवशता को
क्षमा करना।