द्वीपान्तर / नवनीता देवसेन / पापोरी गोस्वामी
अब मैं बिना प्रतिवाद
सभी अभियोग
सिर ऊँचा करके मान लूँगी
स्पष्ट रूप से शून्य ह्रदय
एक प्रस्तर-फलक बन जाऊँगी
हमारे प्रीतिहीन पाप को ख़ुद ही स्वीकार कर
अपने इलाके में चली जाऊँगी
एक दिन निर्जन रात को
अचानक ख़ाली अदालत में
विचारक, वादीपक्ष, वक़ील और क्लर्क
एक साथ चाय की गोल मेज़ पर बैठ गए
मुझे अकेले, निस्सँग, नग्न
कठघरे में खड़े कर दिए गए
किसी दूसरे द्वीप में ठेलकर
दल बाँधकर वो लोग चाय की मेज़ पर बैठे हैं
आजीवन इस चाय की मेज़ ने
तुम लोगों को बन्दी बना रखा है
मैं चप्पू चलाकर तैरते-तैरते
दूसरे द्वीप में चली जाऊँगी
ह्रदय कभी था भी, या नहीं था
ये कहना अब गैरज़रूरी है ।
तुम्हें वो सब मिला जो मेरे ह्रदय में था
अब बिना कोई उम्मीद लिए, बिना किसी प्रत्याशा के
वो सब जेब में भरकर मैं दूसरे द्वीप पर चली जाऊँगी,
जिस पर तुम लोगों का जहाज़ नहीं जा सकता ।
मूल बाँगला से पापोरी गोस्वामी द्वारा अनूदित