भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

द्वैत की अद्वैतता (विज्ञान और अध्यात्म) / शीतल साहू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलिए आज देखते है,
चिंतन के उन दो छोरो को।
विज्ञान और अध्यात्म के,
उन संगम और तकरारो को।

एक कहता है मानो,
दूजा कहता है जानो।
एक कहे पूजो,
दूजा कहे देखो और परखो।
चलो आज देखे, इन दोनों की दृष्टि,
प्रकति के रहस्य और उनकी अद्भुत सृष्टि।

विज्ञान कहे बुद्धि की भाषा,
और अध्यात्म है मन की आशा।
एक है अंतर्मुखी,
तो दूजा बहिर्मुखी।

एक गाए तर्क की गरिमा,
तो दूजा को लागे, ईश्वर की महिमा।
एक है अर्जुन,
तो दूजा नागार्जुन।

एक को लगे जग, असीम और अखंड,
तो दूजा कहे, आओ जाने ससीम ब्रम्हांड।
एक कहे, जगत एक दुर्घटना जैसी,
दूजा को लागे, सृष्टि संकल्पना है किसकी।
एक खोजे रहस्य अंतरिक्षो की ओर,
दूजा कहे, सितारों के आगे जहाँ है, और।

दोनों है जैसे बिल्कुल अलग तरीके,
पर है दोनों, एक सिक्के के दो पहलू सरीखे।
दोनों है एक दूजे के पूरक,
एक है चित तो दूजा पट है।
सिक्के का मोल है तब,
जब वह पूरा साबुत है।

विज्ञान बिन अध्यात्म है अंधा,
और अध्यात्म बिन विज्ञान पंगु।
है दोनों एक ही शरीर के दो नयन,
एक है दिल की बोली,
तो दूजा मस्तिष्क का वचन।
और मानवता के लिए है ज़रूरी,
इनका संतुलन और मिलन।

है, विज्ञान का उद्देश्य मानवता की सेवा,
और कहे अध्यात्म, शिव भाव से जीव सेवा।
मार्ग अलग है दोनों का,
लेकिन लक्ष्य एक ही है दोनों का।
मानवता की सेवा और सभ्यता का विकास,
अंधेरो से लड़ाई और ज्ञान का प्रकाश।

एक कि चाह है भौतिकता से अनंत शक्ति,
तो दूजा का लक्ष्य है, शांति से ईश्वर प्राप्ति।
लक्ष्य एक ही है, अनंत की शक्ति, पूर्णता की प्राप्ति।
एक चाहे अंदर से तो दूजा बाहर से।

एक पहुचे अंदर से अपने चरम पर,
तो दूजा चले बाहर से अपने अंत पर,
असीम, अनंत और पूर्णता की राह पर।

उसी अनंत पर, है मिलती
बाहर की शक्ति और अंदर की शांति।
और यही है,
अद्वैत की सूक्ति, पूर्णता की प्राप्ति॥