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द कूल आइडिया / प्रदीप शुक्ल

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सच है
या फिर देखूँ मैं
यह सपना ऊल- जलूल
मैं घर पर हूँ
मम्मा मेरी जाती है स्कूल

सुबह नहाकर
मम्मा झटपट
हो जाती तैयार
मैं सोती हूँ खूब देर
माँ तब भी करती प्यार

सुबह सबेरे मम्मा मुझको
लगती सुन्दर फूल
 
टिफ़िन
भूल जाती मम्मा
मैं देखूँ आँख निकाल
भुनभुन करते बैग खोलकर
देती हूँ फिर डाल

बिलकुल ही उल्टा है यारों
मगर आइडिया कूल

धीरे-धीरे
मम्मा जाना
दाएँ-बाएँ देख
आज अभी लिक्खूँगी तुम पर
सुन्दर एक सुलेख
 
मेरी प्यारी मम्मा
तुझको कभी न पाऊँ भूल